अपशिष्ट के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है
बायोडिग्रेडेबल (जैवअपघटनीय) अपशिष्ट में जैव अंश होते हैं जिनका प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों द्वारा एक उचित समय अवधि में भोजन के लिए किया जा सकता है। बायोडिग्रेडेबल (जैवअपघटनीय) जैविक में कृषि अवशेष खाद्य, प्रसंस्करण अवशिष्ट पालिका, ठोस अपशिष्ट होते हैं (खाद्य अपशिष्ट, बाग के अपशिष्ट से पत्तियां, कागज, कपड़े/बोरे आदि.), मुर्गीपालन फार्म, पशुशाला, वधशालाओं, डेयरी, चीनी, आसवनी, कागज़, तेल पेराई संयंत्र, स्टार्च प्रोसेसिंग और चमड़ा उद्योगों से अपशिष्ट शामिल हैं।
नॉन-बायोडिग्रेडेबल (अ-जैवअपघटनीय) जैविक सामग्री ऐसी जैवसामग्री होती है जो जैविक अपघटन प्रतिरोधक होती है या बहुत कम अपघटन दर होती है। इसमें मुख्य रूप से लकड़ीयुक्त पौधे, कार्डबोर्ड, कार्टन, कंटेनर, रैपिंग, पाउच, फेंके गए कपड़े, लकड़ी के फर्नीचर, कृषि शुष्क अपशिष्ट, खोई, धान की भूसी आदि सम्मिलित हैं।
1.2 उपलब्ध तकनीकें
बिजली और बायोगैस/साइनगैस के रूप में कचरे से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अपशिष्ट-से-ऊर्जा (डब्ल्यूटीई) तकनीकें नीचे दी गई हैं:
बायोमीथेनेशन
बायोमीथेनेशन जैविक सामग्री का अवायवीय पाचन है जो बायोगैस में परिवर्तित हो जाती है। अवायवीय पाचन (एडी) एक बैक्टीरिया किण्वन प्रक्रिया है जो मुक्त ऑक्सीजन के बिना चलती है और इसके परिणामस्वरूप बायोगैस बनती है जिसमें अधिकांश मीथेन (~60%), कार्बन डाइऑक्साइड (~40%) और अन्य गैसें होती हैं। बायोमीथेनेशन के दोहरे लाभ हैं। यह बायोगैस के साथ अंतिम उत्पाद के रूप में खाद भी प्रदान करती है।
अलग-अलग किए गए कार्बनिक गीले कचरे जैसे कि रसोई, कैंटीन, संस्थान, होटल, और वधशालाओं और सब्जियों के बाजार के अपशिष्टों जैविक अपघटन हेतु इस तकनीक को विकेन्द्रीकृत तरीके से सुविधाजनक ढंग से नियोजित किया जा सकता है।
बॉयोमीथेनेशन प्रक्रिया में निर्मित बायोगैस को गैस बॉयलर/बर्नर में सीधे जलाकर तापीय अनुप्रयोगों वाले उद्योगों में और खाना पकाने के लिए ऊष्मा उत्पन्न की जा सकती है या गैस इंजन में जलाकर बिजली उत्पन्न की जा सकती है। वैकल्पिक रूप में, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य पदार्थों को हटाकर बायोगैस साफ करके, बायोसीएनजी का उत्पादन किया जा सकता है। इसे राष्ट्रीय गैस ग्रिड में प्राकृतिक गैस की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है या वाहन में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
बायोमीथेनेशन प्रक्रिया उपयोग करके, मवेशियों का 20-25 किलोग्राम गोबर लगभग 1मी3 बायोगैस बनाता है और 1मी3 बायोगैस में 2 यूनिट बिजली या 0.4 किग्रा बायोसीएनजी उत्पन्न करने की क्षमता होती है।
भस्मीकरण (इनसिनरेशन):
अपशिष्ट (पालिका ठोस अपशिष्ट या अस्वीकृत व्युत्पन्न ईंधन) का पूर्ण दहन करते हुए ऊष्मा प्राप्ति द्वारा ) वाष्प उत्पन्न करना इनसिनरेशन तकनीक है, जिससे वाष्प टरबाइनों द्वारा बिजली उत्पन्न की जाती है।
बॉयलर में उत्पन्न फ्लू गैसें एक विस्तृत वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली द्वारा शोधित की जाती हैं। ठोस अपशिष्ट के दहन से बची राख को अनिवार्य प्रोसेसिंग के बाद भवन निर्माण सामग्री के रूप में उपयोग किया जा सकता है जबकि अवशेषों को एक लैंडफिल में सुरक्षित रूप से निपटान किया जा सकता है।
यह तकनीक सुस्थापित तकनीक है और भारत में व्यावसायिक स्तर पर सफलतापूर्वक कई परियोजनाओं में ठोस अपशिष्ट जैसे कि नगरपालिका ठोस अपशिष्ट और औद्योगिक ठोस अपशिष्ट आदि का शोधन करने और बिजली उत्पन्न करने के लिए लागू की गई है।
गैसीकरण
गैसीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें उच्च तापमान (500-1800° C) का सीमित मात्रा में ऑक्सीजन की उपस्थिति में उपयोग करके सामग्रियां अपघटित करते हुए सिंथेटिक गैस (कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और हाइड्रोजन (H2) का मिश्रण) का उत्पादन किया जाता है। जैवमात्रा, कृषि अवशेष, पृथक्कृत एमएसडब्ल्यू और आरडीएफ पैलेट्स, साइनगैस उत्पन्न करने के लिए गैसिफायर में उपयोग किए जाते हैं। फिर इस गैस को तापीय या बिजली उत्पादन उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है।
निम्नतर शक्ति स्तर (<2एमडब्ल्यू) पर अधिक कुशलता से बिजली उत्पन्नकरना और उत्सर्जनों में कमी करना, अपशिष्ट के गैसीकरण काउद्देश्य है और इसलिए यह ठोस अपशिष्ट के तापीय उपचार के लिए एक आकर्षक विकल्प है।
ताप-अपघटन (पायरोलिसिस)
ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में दहनशील सामग्रियां अपघटित करने के लिए ताप-अपघटन (पायरोलिसिस) में ऊष्मा का उपयोग किया जाता है और दहनशील गैसों का मिश्रण (मुख्य रूप से मीथेन जटिल हाइड्रोकार्बन, हाइड्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड), तरल पदार्थ और ठोस अवशेष प्राप्त होता है। ताप-अपघटन (पायरोलिसिस) प्रक्रिया के उत्पाद निम्न हैं: (i) एक गैसीय मिश्रण; (ii) एक द्रव (बायो ऑयल /टार); (iii) एक ठोस अवशिष्ट (कार्बन ब्लैक)। इनमें से किसी भी प्रक्रिया से उत्पन्न गैस का उपयोग बॉयलर में गर्मी प्रदान करने के लिए किया जा सकता है, या इसे साफ किया जा सकता है और दहन टरबाइन जेनरेटरों में उपयोग किया जा सकता है। उत्सर्जन कम करना और लाभ को अधिकतम करना, अपशिष्ट के ताप-अपघटन (पायरोलिसिस) का उद्देश्य है।
1.3 संभावित क्षमता
शहरी और औद्योगिक सेक्टरों को कवर करते हुए मुख्यतः भारत की ऊर्जा संभाव्य क्षमता हेतु सेक्टरवार कवरिंग का सारांश नीचे दिया गया है:
क्रमांक | सेक्टर | ऊर्जा क्षमता – एमडब्ल्यू |
---|---|---|
1 | शहरी ठोस अपशिष्ट | 1247 |
2 | शहरी तरल अपशिष्ट | 375 |
3 | कागज (तरल अपशिष्ट) | 254 |
4 | मांस का प्रसंस्करण और परिरक्षण (तरल अपशिष्ट) | 182 |
5 | मांस का प्रसंस्करण और परिरक्षण (ठोस अपशिष्ट) | 13 |
6 | मछली, क्रस्टेशियन और मोलस्क का प्रसंस्करण और परिरक्षण (तरल अपशिष्ट) | 17 |
7 | सब्जी प्रसंस्करण (ठोस अपशिष्ट) | 3 |
8 | कच्ची वनस्पति (ठोस अपशिष्ट) | 579 |
9 | फल प्रसंस्करण (ठोस अपशिष्ट) | 8 |
10 | कच्चे फल (ठोस अपशिष्ट) | 203 |
11 | पाम ऑयल (ठोस अपशिष्ट) | 2 |
12 | दूध प्रसंस्करण/डेयरी उत्पाद (तरल अपशिष्ट) | 24 |
13 | मक्का स्टार्च (तरल अपशिष्ट) | 47 |
14 | टैपिओका स्टार्च (तरल अपशिष्ट) | 36 |
15 | टैपिओका स्टार्च (ठोस अपशिष्ट) | 15 |
16 | चीनी (तरल अपशिष्ट) | 49 |
17 | शुगर प्रेस मड (ठोस अपशिष्ट) | 200 |
18 | आसवनी (तरल अपशिष्ट) | 781 |
19 | शराब उद्योग | लागू नहीं |
20 | वधशाला (ठोस अपशिष्ट) | 48 |
21 | वधशाला (तरल अपशिष्ट) | 263 |
22 | पशुशाला (ठोस अपशिष्ट) | 862 |
23 | मुर्गी पालन (ठोस अपशिष्ट) | 462 |
24 | चिकोरी (ठोस अपशिष्ट) | 1 |
25 | टेनरियां (तरल अपशिष्ट) | 9 |
26 | टेनरियां (ठोस अपशिष्ट) | 10 |
कुल (एमडब्ल्यूईक्यू) | 5690 |
---|---|
भारत में नगरीय और औद्योगिक जैविक अपशिष्ट से कुल अनुमानित ऊर्जा उत्पादन संभावित क्षमता लगभग 5690 एमडब्ल्यू है।
अपशिष्ट से ऊर्जा की संचयी उपलब्धि (30.06.2019 तक)
एमएसडब्ल्यू, नगरीय और औद्योगिक अपशिष्ट पर आधारित ग्रिड कनेक्टेड बिजली परियोजनाएं 138.30 एमडब्ल्यू तक पहुंच गई हैं।
अब तक 111.43एमडब्ल्यू ऑफ-ग्रिड बिजली उत्पादन, 6,65,606 मी3/प्रतिदिन बायोगैस उत्पादन क्षमता और 59028 किलोग्राम/प्रतिदिन बायोसीएनजी उत्पादन क्षमता प्राप्त कर ली गई है। कुल ऑफग्रिड (ऑफग्रिड बिजली, बायोगैस और बायोसीएनजी) उपलब्धि 178.73 एमडब्ल्यूईक्यू के बराबर है।
क्रम सं | राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों का नाम | एमएसडब्ल्यू आधारित बिजली संयंत्र |
कृषि, नगरीय और औद्योगिक निस्सारक/अपशिष्ट | योग | |||
---|---|---|---|---|---|---|---|
बिजली (ग्रिड) | बिजली (ग्रिड) | बिजली(ऑफ-ग्रिड) | बायोगैस(ऑफ-ग्रिड) | बायोसीएनजी (ऑफ-ग्रिड) | |||
एमडब्ल्यू(संयंत्रों की संख्या) | एमडब्ल्यू(संयंत्रों की संख्या) | एमडब्ल्यू(संयंत्रों की संख्या) | मी 3 /प्रतिदिन(संयंत्रों की संख्या) | किलोग्राम/प्रतिदिन(संयंत्रों की संख्या) | एमडब्ल्यूईक्यू | ||
1 | आंध्र प्रदेश | – | 23.16 (4) | 17.66 (11) | 60,240 (5) | – | 46.44 (20) |
2 | बिहार | – | – | – | 12,000 (1) | – | 1.00 (1) |
3 | छत्तीसगढ़ | – | – | 0.33 (1) | – | – | 0.33 (1) |
4 | दिल्ली | 52.00 (3) | – | – | – | – | 52.00 (3) |
5 | गुजरात | – | – | 11.275 (10) | 24,840( 4) | 21,138 (4) | 17.45 (18) |
6 | हरियाणा | – | – | 4.0 (2) | – | 4250 (3) | 4.96 (5) |
7 | हिमाचल प्रदेश | – | – | – | 12,000 (1) | – | 1.00 (1) |
8 | कर्नाटक | – | 1.00 (1) | 4.8 (3) | 58,080 (3) | 1800 (1) | 11.05 (8) |
9 | केरल | – | – | – | 2,760 (1) | – | 0.23 (1) |
10 | मध्य प्रदेश | 11.5 (1) | 3.9 (2) | – | 25,566 (4) | 1,200 (1) | 17.78(8) |
11 | महाराष्ट्र | 3.00 (1) | 9.59 (3) | 14.63 (10) | 1,10,580 (10) | 19,533 (3) | 40.30 (27) |
12 | पंजाब | – | 9.25 (2) | 4.17 (3) | 33,720 (5) | 1,847 (1) | 16.65 (11) |
13 | राजस्थान | – | – | 3.0 (1) | – | 4,000 (2) | 3.91 (3) |
14 | तमिलनाडु | – | 6.4 (3) | 4.05 (3) | 1,57,320 (28) | – | 22.96 (34) |
15 | तेलंगाना | – | 18.5 (3) | 1.0 (1) | 30,000 (4) | – | 22.00 (8) |
16 | उत्तर प्रदेश | – | – | 44.625 (22) | 57,200 (5) | 2,000 (1) | 49.81 (28) |
17 | उत्तराखंड | – | – | 1.89 (2) | 67,200 (5) | 5,460 (1) | 8.49 (8) |
18 | पश्चिम बंगाल | – | – | – | 14,040(2) | – | 1.17 (2) |
योग | 66.5 (5) | 71.8 (18) | 111.43 (69)* | 6,65,606 (78) | 59,028 (16) | 317.03 (186) | |
249.73एमडब्ल्यू | 55.46 एमडब्ल्यूईक्यू | 11.84 एमडब्ल्यूईक्यू |
ग्रिड- 138.30 एमडब्ल्यू (23) | ऑफ-ग्रिड-178.73 एमडब्ल्यूईक्यू (163) |
---|
जैवमात्रा (बायोमास) गैसीफायर की क्रमसंचयी उपलब्धि (30.06.2019 तक)
अब तक 166.17 एमडब्ल्यू की बायोमास गैसीफायर क्षमता प्राप्त की जा चुकी है।