ग्रीन हाइड्रोजन पर संक्षिप्त जानकारी
भारत ने वर्ष 2047 तक ऊर्जा के क्षेत्र में स्वतंत्रता अर्थात आत्मनिर्भरता और वर्ष 2070 तक नेट-शून्य के लक्ष्य की घोषणा की है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में ग्रीन हाइड्रोजन द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आशा है। ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन, इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया द्वारा किया जाता है, और इस प्रक्रिया में सौर, पवन या जलविद्युत जैसे अक्षय स्रोतों से उत्पन्न विद्युत का उपयोग करके पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जाता है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप स्वच्छ और उत्सर्जन- मुक्त ईंधन प्राप्त होता है जिसमें जीवाश्म ईंधन को प्रतिस्थापित करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की अपार क्षमता होती है। ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की एक अन्य विधि बायोमॉस है, जिसमें हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए बायोमॉस का गैसीकरण शामिल है। ये दोनों उत्पादन विधियां स्वच्छ और टिकाऊ हैं, जो ग्रीन हाइड्रोजन को कम कार्बन वाले भविष्य परिवर्तन हेतु आकर्षक विकल्प प्रदान करती है।
परिवहन, पत्तन और स्टील सहित कई क्षेत्रों को कार्बनमुक्त करने की क्षमता के कारण ग्रीन हाइड्रोजन की मांग तेजी से बढ़ रही है। ग्रीन हाइड्रोजन परिवहन में पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की जगह ले सकता है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसका उपयोग उद्योग में अमोनिया, मेथनॉल और स्टील के उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है, जो वर्तमान में जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त, ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों के लिए बैकअप ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जा सकता है, जो ऊर्जा का निरंतर और भरोसेमंद स्रोत प्रदान करता है।
ग्रीन हाइड्रोजन के अनेक उपयोग हैं जिसका उपयोग वाहन चालन तथा विद्युत आपूर्ति के लिए ईंधन संयंत्रों में किया जा सकता है। इसका उपयोग ऊष्मक प्रणाली और रसायनों तथा उर्वरकों के उत्पादन में भी किया जा सकता है। हाइड्रोजन ईंधन संयंत्रों में उच्च ऊर्जा घनत्व होता है और पारंपरिक कम्बसचन इंजनों की तुलना में अधिक कुशल होते हैं, जिससे वे वाहनों के लिए विद्युत आपूर्ति का आकर्षक विकल्प बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त, ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग माइक्रोग्रिड में किया जा सकता है, जो दूरदराज के क्षेत्रों में विद्युत प्रदान करता है और ऊर्जा आत्मनिर्भरता को सक्षम बनाता है।
भारत के लिए ऊर्जा आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में ग्रीन हाइड्रोजन के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता है। सौर, पवन और जलविद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग से ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करते हुए, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम कर सकता है और ऊर्जा का एक स्थिर और भरोसेमंद स्रोत सुनिश्चित कर सकता है। ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन स्थानीय स्तर पर भी किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले महंगे आयात की मांग कम हो जाएगी। इसके अलावा, अपशिष्ट बायोमॉस के उपयोग से उत्पादित ग्रीन हाइड्रोजन किसानों और स्थानीय समुदायों के लिए आय का अतिरिक्त स्रोत प्रदान करता है। इसलिए, भारत ने 19,744 करोड़ रुपये के परिव्यय से प्रति वर्ष 5 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता के लक्ष्य के साथ राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन शुरू किया है।
निष्कर्षतः, ग्रीन हाइड्रोजन में कई क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज करने, कार्बन उत्सर्जन कम करने और ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की अपार क्षमता है। सौर, पवन और जलविद्युत जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल है, जो इसे कम कार्बन वाले भविष्य निर्माण हेतु आकर्षक विकल्प प्रदान करती है। ग्रीन हाइड्रोजन परिवहन और उद्योग में पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की जगह ले सकता है, जो ऊर्जा का एक निरंतर और विश्वसनीय स्रोत प्रदान करता है। ऊर्जा आत्मनिर्भरता में इसके महत्व को कम नहीं आंका जा सकता, क्योंकि यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम कर सकता है और ऊर्जा का स्थिर और विश्वसनीय स्रोत प्रदान कर सकता है।
इसे प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने 04 जनवरी 2023 को“राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन ” शुरू किया है। .