पनबिजली परियोजनाओं को उनके आकार के आधार पर बड़ी या लघु पनबिजली परियोजनाओं के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। लघु पन बिजली परियोजनाओं को वर्गीकृत करने के लिए विभिन्न देशों में अलग-अलग आकार के लिए विभिन्न मानदंड है। भारत में 25 मेगावाट या उससे कम क्षमता के पन बिजली संयंत्रों को लघु पन बिजली के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 1989 के पहले पन बिजली विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत था। 1989 में 3 मेगावाट और उससे कम क्षमता के संयंत्रों को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) को सौंप दिया गया। उसके बाद मंत्रालय द्वारा लघु पन बिजली को बढ़ावा देने के लिए कई पहलें की गई जिनमें भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में लघु पन बिजली संसाधनों के विकास को अधिकतम बनाना शीर्षक वाली यूएनडीपी-जीईएफ सहायता प्राप्त तकनीकी सहायता परियोजना और अन्य के साथ-साथ निजी क्षेत्र की सहभागिता के माध्यम से 100 मेगावाट नहर आधारित लघु पन बिजली परियोजनाओं के लक्ष्य के साथ लघु पनबिजली विकास घटक वाली आईडीए ऋण श्रृंखला के साथ भारत अक्षय संसाधन विकास परियोजना का कार्यान्वयन शामिल हैं। नवंबर, 1999 में 25 मेगावाट या उससे कम क्षमता के संयंत्र को एमएनआरई को सौंपा गया।
देश में लघु/छोटी पनबिजली परियोजनाओं से विद्युत उत्पादन के लिए पनबिजली एवं अक्षय ऊर्जा विभाग (एचआरईडी) जिसे पहले आईआईटी रूड़की का वैकल्पिक जल ऊर्जा केंद्र (एएचईसी) के रूप में जाना जाता था, द्वारा इसे अपने जुलाई, 2016 के पनबिजली डेटाबेस के रूप में संकलित 7133 स्थलों से 21133 मेगावाट अनुमानित क्षमता का आकलन किया गया था। भारत के पर्वतीय क्षेत्र मुख्यतः अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर और उत्तराखंड इस क्षमता के लगभग आधे हिस्से का योगदान करते हैं। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और केरल अन्य संभावित राज्य है। निजी क्षेत्रों के निवेशों को आकर्षित करने के लिए गहन चर्चा, परियोजनाओं की निगरानी और नीतिगत वातावरण की समीक्षा के माध्यम इन राज्यों की ओर ध्यान केंद्रित किया जाता है।