वेबसाइट का लिंकः https://sustainplus.org/
सस्टेन प्लस एनर्जी फाउंडेशन की परिकल्पना और सह-स्थापना सोशल अल्फा, सेल्को फाउंडेशन और कलेक्टिव फॉर इंटीग्रेटेड लाइवलिहुड इनीशिएटिव (सीआईएनआई) द्वारा की गई और भारत में यह जलवायु कार्यक्रम में परिवर्तन लाने का अग्रणी प्रयास है।
जहां भी संभव हो, महिलाओं के लिए अनुकूल / सकारात्मक / संतुलित समाधानों को समर्थकारी बनाने पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, सस्टेन प्लस ने 68,000 से अधिक महिलाओं को डीआरई समाधान के प्रत्यक्ष उपयोगकर्त्ता या मालिक/उद्यमी बनने में सक्षम बनाया है। इनमें से उल्लेखनीय है, सौर सिंचाई, ई-मोबिलिटी, स्वच्छ रसोई, अपशिष्ट प्रबंधन (बायोगैस), पशुधन प्रबंधन, पेय जल सुलभता और स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए सौर आधारित विद्युत आपूर्ति प्रणाली के लिए डीआरई समाधानों पर बड़े स्तर के कार्यक्रम शामिल हैं, जिनमें मांग और ऊर्जा की कमी के अति महत्वपूर्ण क्षेत्रों को दर्शाया गया है।
हीयरिंग फ्रॉम द फिल्ड्स
जिला: क्योंझर, ओडिशा
कार्यान्वयन साझेदार: सीआईएनआई
समाधान: सब-एचपी सौर सिंचाई पंप
ओडशिा के क्योंझर जिले के हरीचन्दनपुर प्रखंड में नुआगांव जनजातीय बहुल गाँव है। इस गाँव और आस-पड़ोस के गांवों में महिला सदस्य लखपति किसान कार्यक्रम को चला रही हैं। पिछले वर्ष के विपरीत इस वर्ष की सर्दियों में ब्लॉक में छोटी नदियों के किनारे की बंजर भूमि हरीभरी हो चुकी है। पास से देखने पर महिला किसान एक एकड़ के तीन-चौथाई हिस्सों में मिर्च, करेला और फूलगोभी की खेती कर रही हैं। इन प्रथम पीढ़ी के सब्जी उत्पादकों के लिए यह बदलाव घर के बने हुए मैनुअल स्प्रिंकलर से सौर संचालित एचपी पंप तक हुआ है। कृषि क्षेत्र में भी तेजी से बदलाव आया है। एक किसान दीदी कहती हैं “पहले मैं 100 पौधे लगाया करती थी, लेकिन अब मैं मिर्च के 1500 पौधे लगाने में सक्षम हूँ।” पोर्टेबल सब-एचपी सौर पंप छोटी 7 एकड़ भूमि में से 0.70 के समतुल्य भूखंड में सिंचाई करने में सक्षम है। इस पंप से पिछले मौसम में एक महिला किसान ने मिर्च की खेती कर 60,000 भारतीय रुपए की बढ़ी हुई आमदनी अर्जित की। सामान्य रूप से ब्लॉक के 200 से अधिक किसान भी सब-एचपी सौर पंपों की उपलब्धता एवं उपयोग के माध्यम से लाभान्वित हुए हैं, जिसे खेतवर्क टेक्नोलॉजी स्टार्ट-अप द्वारा डिजाइन की गई थी।
जिला: रामगढ़, झारखंड
कार्यान्वयन साझेदारः सीआईएनआई सेल्को इंडिया
समाधान:सौर संचालित सिलाई
भारत के कपड़ा उद्योग में, ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत या संस्थागत सेट-अप के साथ लघु टेलरिंग समूहों का होना आम बात है। ऐसे समूह, वस्त्र कंपनियों और निर्माताओं के बड़े आर्डरों के लिए रोजगार के स्थल के रूप में कार्य करते हैं। वस्त्र कंपनियां और निर्माता अपना सिलाई कार्य देते हैं, जिससे रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध होते हैं। झारखंड के रामगढ़़ जिले का मगनपुर एक ऐसा गाँव है। इस गाँव के लोग परंपरागत रूप से दर्जी का कार्य करते हैं और केवल यही कार्य उनकी आमदनी एवं जीविका का एकमात्र स्रोत है। इस गाँव के करीब 300 परिवार भूमिहीन हैं और एक व्यवसाय के रूप में पूरी तरह से सिलाई पर निर्भर हैं। वे मोटर आधारित सिलाई मशीन का इस्तेमाल करते हैं, जो ग्रिड से बिजली द्वारा संचालित होती है। हालांकि, बिजली आपूर्ति अनुमानित रूप से खराब और अनिश्चित है और इन लगातार बाधाओं के कारण वे समय पर अपने आर्डर को पूरा नहीं कर पाते हैं, जो कोलकाता और कटक के बाजारों के लिए होते हैं।
शाहनाज खातून, मगनपुर की एक अनुभवी दर्जी है, जो हाइब्रिड मशीन की एक उपयोगकर्ता थी और बढ़ी हुए उत्पादकता और बिजली की आपूर्ति की विश्वसनीयता के कारण 12,000 रु. की अतिरिक्त आमदनी कमा पाने में सक्षम थी। पहले चरण में स्थापित 50 इकाइयों की सफलता के आधार पर अन्य 100 इकाइयों के कार्यान्वयन की योजना बनाई गई है।