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    अपतटीय पवन

    विश्व स्तर पर, अपतटीय पवन का इतिहास लगभग दो दशक पुराना है जिसमें वर्ष 1991 में, डेनमार्क में पहली अपतटीय पवन टरबाइन चालू की गई थी, जिसे वर्ष 2017 में बंद कर दिया गया है। अब तक, 18 विभिन्न देशों में 57 गीगावॉट से अधिक की अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित की गई हैं, जिनमें से अग्रणी देश – यूके, चीन, जर्मनी, डेनमार्क और नीदरलैंड हैं।

    भारत तीन तरफ से पानी से घिरा हुआ है और इसकी तटरेखा लगभग 7600 किमी है तथा यहां अपतटीय पवन ऊर्जा का उपयोग करने की अच्छी संभावनाएं हैं। इस पर विचार करते हुए, सरकार द्वारा दिनांक 6 अक्टूबर, 2015 की राजपत्र अधिसूचना के अनुसार “राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति” अधिसूचित की गई थी। नीति के अनुसार, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत में अपतटीय पवन ऊर्जा के विकास के लिए नोडल मंत्रालय के रूप में कार्य करेगा और देश के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के भीतर सामुद्रिक स्थल के विकास और उपयोग के लिए अन्य सरकारी संस्थाओं के साथ गहन समन्वय से कार्य करेगा और देश में अपतटीय पवन ऊर्जा विकास की समग्र निगरानी के लिए जिम्मेदार होगा। राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (नीवे), चेन्नई, ईईजेड में संसाधन आकलन, सर्वेक्षण और अध्ययन करने, खंडों को सीमांकित करने और अपतटीय पवन ऊर्जा फार्म की स्थापना के लिए डेवलपरों को सुविधा प्रदान करने के लिए नोडल एजेंसी होगा।

    समुद्र में किसी बाधा के न होने से पवन की बेहतर गुणवत्ता प्राप्त होती है और इसका विद्युत ऊर्जा में रूपांतरण होता है। तटीय पवन टर्बाइन की 2-3 मेगावाट की तुलना में, अपतटीय पवन टरबाइन आकार में बहुत बड़े होते हैं (5 से 10 मेगावाट प्रति टर्बाइन की श्रेणी में)। जहां समुद्री पर्यावरण में आवश्यक मजबूत संरचनाओं और नींव के कारण अपतटीय टर्बाइनों के लिए प्रति मेगावाट लागत अधिक आती है, वहीं पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के बाद इन टर्बाइनों की उच्च क्षमता के कारण वांछनीय टैरिफ प्राप्त किए जा सकते हैं।

    भारत में अपतटीय पवन ऊर्जा को सुविधाजनक बनाना (फोविंड)

    यह दिसंबर, 2013 से मार्च, 2018 तक ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल (जीडब्ल्यूईसी) के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम द्वारा लागू की गई और यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा सहायता प्राप्त परियोजना है, ताकि भारत को अपने अपतटीय पवन ऊर्जा विकास में सहायता मिल सके और बदले में, विद्युत क्षेत्र में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के उपयोग की दिशा में भारत के परिवर्तन में योगदान हो सके। यह परियोजना तकनीकी-वाणिज्यिक विश्लेषण और आरंभिक संसाधन आकलन के माध्यम से विकास के लिए संभावित क्षेत्रों की पहचान के लिए गुजरात और तमिलनाडु राज्यों पर केंद्रित थी। फोविंड के परिणामों को निम्नलिखित रिपोर्टों में संक्षेप में दिया गया है।

    भारत में प्रथम अपतटीय पवन विद्युत परियोजना (एफओडब्ल्यूपीआई)

    यह दिसंबर, 2015 से सीओडब्ल्यूआई के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम द्वारा कार्यान्वित की जा रही और यूरोपीय संघ द्वारा सहायता प्राप्त परियोजना है, जिसका उद्देश्य पूर्व-वित्तीय-निवेश-निर्णय (प्री-एफआईटी) के चरण तक सहायता प्रदान करना और अपतटीय पवन क्षेत्र के भीतर भारतीय हितधारकों के क्षमता निर्माण के लिए सामान्य सहायता प्रदान करना है। निम्नलिखित रिपोर्टें पहले से ही एफओडब्ल्यूपीआई परियोजना के तहत प्रकाशित की गई हैं।

    प्रारंभिक परियोजना विकास के लिए चिन्हित किए गए अपतटीय पवन क्षेत्र

    उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों के प्रारंभिक मूल्यांकन और अन्य स्रोतों से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर, गुजरात और तमिलनाडु में आठ-आठ क्षेत्रों को अपतटीय पवन ऊर्जा के उपयोग के लिए संभावित अपतटीय क्षेत्रों के रूप में चिन्हित किया गया है। चिन्हित किए गए क्षेत्रों के भीतर नीवे द्वारा प्रारंभिक मूल्यांकन से पता चलता है कि 36 गीगावॉट अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता केवल गुजरात के तट पर मौजूद है। इसके अलावा, तमिलनाडु तट पर लगभग 35 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता मौजूद है।

    अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना के लिए स्ट्रेटेजी पेपर

    अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना के लिए स्ट्रेटेजी पेपर (1 एमबी, पीडीएफ)

    • मॉडल-1: इस मॉडल का अनुपालन गुजरात तट से दूर जोन-बी के वर्तमान स्थल, जैसे स्थलों के लिए किया जाएगा जिनके लिए नीवे / सरकारी संस्था द्वारा अध्ययन / सर्वेक्षण कराए जाते हैं।
    • मॉडल-2: इस मॉडल का अनुपालन उन साइटों के लिए किया जाएगा जिनके लिए सरकार द्वारा आयोजित किए जाने के लिए अपतटीय बोलीयों में भागीदारी हेतु (समुद्र तल पर किसी भी विशिष्टता के बिना)।
    • मॉडल-3: इस मॉडल का अनुपालन उन साइटों के लिए किया जाएगा जिनके लिए संभावित डेवलपर्स द्वारा अध्ययन / सर्वेक्षण किये जाएंगे (समुद्र तल पर विशिष्टता के साथ) और परियोजना का विकास द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से या कैप्टिव खपत या बिजली विनिमय आधार पर होगा।

    अपतटीय पवन ऊर्जा पट्टा नियम

    अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं के विकास के लिए, अपतटीय क्षेत्रों में पट्टा व्‍यवस्‍था न‍ियंत्रित करने हेतु विदेश मंत्रालय द्वारा दिनांक 19.12.2023 के जीएसआर 901(ई) के माध्यम से अपतटीय पवन ऊर्जा पट्टा नियम अधिसूचित किए गए हैं। इन नियमों का प्रशासन नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा किया जाएगा।

    अपतटीय पवन ऊर्जा पट्टा नियम, 2023 (1 MB, PDF)

    अपतटीय पवन विद्युत आकलन अध्ययन और सर्वेक्षण के लिए दिशानिर्देश

    अपतटीय पवन विद्युत आकलन अध्ययन और सर्वेक्षण के लिए दिशानिर्देश (793 केबी, पीडीएफ) सितंबर, 2018 में नीवे द्वारा अनुमोदित और जारी किए गए थे ताकि अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजना के विकास के लिए अध्ययन / सर्वेक्षण कार्य करने के इच्छुक हितधारकों की सुविधा प्रदान की जा सके।

    लिडार के माध्यम से अपतटीय पवन संसाधन आकलन

    उपग्रह से प्राप्त आंकडों के माध्यम से किए गए अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता अनुमान को डेटा को स्वीकार्य बनाने के लिए वास्तविक मापन के माध्यम से मान्य बनाने की आवश्यकता है। मंत्रालय द्वारा गुजरात और तमिलनाडु के तट पर चिन्हित क्षेत्रों में लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग (लिडार) तैनात करके एक मापन अभियान शुरू करने का निर्णय लिया गया है। पीपावाव बंदरगाह से लगभग 25 किलोमीटर दूर, गुजरात के तट पर चिह्नित जोन-बी में अपतटीय पवन संसाधन आकलन के लिए नवंबर, 2017 में एक लिडार को चालू किया गया। तैनात लिडार से एकत्र किए गए दो साल के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है और रिपोर्ट नीवे की वेबसाइट पर प्रकाशित की गई है। प्राथमिक आंकड़े नीवे की वेबसाइट (https://niwe.res.in/department_wsom_lidar_raw_data.php) पर उपलब्ध हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पवन की वार्षिक औसत गति, 100 मीटर हब ऊंचाई वाले स्थानों पर 7.52 मीटर प्रति सेकंड पाई गई है।

    महासागरीय, भू-भौतिकीय और भू-तकनीकी अध्ययन

    पवन डेटा के अलावा, अपतटीय पवन परियोजनाओं की व्यवहार्यता भी काफी हद तक महासागरीय विज्ञान संबंधी डेटा, भू-भौतिकीय और भू-तकनीकी डेटा की दृष्टि से स्थल की स्थिति पर निर्भर करती है। मंत्रालय की इस संबंध में, नीवे के माध्यम से अपेक्षित अध्ययन कराने और बोली शुरू होने से पहले हितधारकों को प्राथमिक डेटा उपलब्ध कराने की योजना है, ताकि जोखिमों को कम किया जा सके। गुजरात में 1.0 गीगावॉट परियोजना क्षमता के लिए 365 वर्ग किलोमीटर (गुजरात) के लिए भू-भौतिक सर्वेक्षण पूरा हो गया है। इस साइट के लिए एक त्वरित पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (रैपिड ईआईए) भी कराया गया है।